माँ

बिना बोले जो समझ जाए
मन की बात जो सुन पाए
हर लफ़्ज़ जो निकले जुबान से
उसे निभाने में जो जूट जाए ।

पन्ने भर जाए जिसकि तारीफ में
मगर दिल कभी ना भरे
घर को मंदिर बनाए जो
उसके चारणों को मेरा नमन रहे ।

हस्ती है वो, बोलती है वो
कभी कभी फटकार भी लगती है वो
पल मे रुठे, पल मे माने
ऐसी मेरी मां कहलाती है वो ।

आखिर में बस इतना ही कहूंगी….

ना हो तेरी आंखें कभी भी नम
बस मुस्कुराती रहे तू हर दम
तू जीये हज़ारों साल
यही दुआ करती रहूं मैं हर पल।